Tuesday 27 December 2016

लड्डू मोती चूर के-

गुणकारी है स्वास्थ सुधारे।
नीम करेला मित्र हमारे।
लेकिन जिभ्या रही मचलती।
दोनों की कड़ुवाहट खलती।
आंखे देखें घूर के।

लड्डू मोतीचूर के।।१।।


दिखा झूठ का स्वाद अनोखा।
खुद बोलो तो लगता चोखा।
किन्तु दूसरा जब भी बोले।
कड़ुवाहट काया में घोले।
तेवर दिखें हुजूर के।
लड्डू मोती चूर के।।२।।

बड़े काम का है रत्नाकर।
धन्य धन्य हम मोती पाकर।
मछुवा मछली पकड़े जाकर।
लौटे केवल पैर भिगाकर।
बन्दे कई सुदूर के।
लड्डू मोतीचूर के।।३।।

दुखी नहीं हम अपने दुख से।
रहें दुखी गैरों के सुख से।
उसकी आमदनी की चर्चा।
ज्यादा लागे अपना खर्चा ।
ढोल सुहावन दूर के।
लड्डू मोती चूर के।।४।।

Sunday 25 December 2016

मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले-


खले चाँदनी चोर को, व्यभिचारी को भीड़।
दूजे के सम्मान से, कवि को ईर्ष्या ईड़।
कवि को ईर्ष्या ईड़, बने अपने मुंह मिट्ठू।
कवि सुवरन बिसराय, कहे सरकारी पिट्ठू।
रविकर तू भी सीख, किन्तु पहले तो छप ले।
मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले।।

Thursday 22 December 2016

समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव-


छपने का अखबार में, जिन्हें रहा था चाव।
समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव।।
रोला
वे रद्दी के भाव, बनाये ठोंगा कोई।
जो रचि राखा राम, वही रविकर गति होई।
मिर्ची नमक लपेट, पेट पूजा कर फेका।
कोई दिया जलाय, नाम मत ले छपने का।।

Friday 16 December 2016

टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा -

टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।
उत्साह बढ़ता जा रहा, आकाश नीचे आ रहा । 

खाया कमाया जिंदगी भर पितृ-ऋण उतरे सभी । 
संतान को इन्सां बनाया अब नहीं भटके कभी । 
ख्वाहिश तमन्ना शौक सारे आज हम पूरी करें। 
चाहे रहे जिन्दा युगों तक आज ही या हम मरें । 
कविमन हुआ मदमस्त रविकर गीत रच रच गा रहा । 
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।। 

कविता करूँगा अब पढूंगा मंच पर जाकर वहां । 
माँ शारदे की वंदना खुशियां बिखेरूँगा जहाँ । 
आवाज देगी मौत भी तो कह सकूँगा रुक जरा । 
यह काफिया तो लूँ मिला, पूरा करूँ यह अंतरा । 
दुनिया करेगी फिर सिफारिश रूप रविकर भा रहा । 
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।। 

यह लोन लकड़ी तेल ही काया जलाये-भून दे । 
परिवार की खातिर जवानी अस्थि-मज्जा खून दे। 
निकला कहाँ कब वक्त रविकर आजतक अपने लिए । 
संसार की खातिर नहीं परिवार की खातिर जिए । 
अब देश की खातिर जियूँगा लोकहित अब भा रहा ॥ 
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।। 


Sunday 11 December 2016

जय गणेशा

जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।
शुभ सूंढ़ क्यूं टेढ़ी हुई हर भक्त को बतलाइये।
कैसे विराजे दीर्घकाया मूस पर समझाइये।
जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।।
ब्रह्माँड मे गणपति सदा पाते रहे पूजा प्रथम।
लम्बा उदर इक दाँत टूटा स्वागतम् प्रभु स्वागतम्।
शुभ लाभ विद्या बुद्धि के दाता दया दिखलाइये।
जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।
हों रिद्धि दायें सिद्धि बायें मोहिनी छवि दो दिखा।
दुर्भाग्य काटो भक्त के यदि माथ पर रविकर लिखा।
फिर मोदकम् जम्बू फलम् उदरस्थ करके जाइये।
जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।