Wednesday 7 November 2012

कर कुकर्म मुसकाय, किया था क़त्ल हालिया : लिंक-लिक्खाड़ 451


भली बहस का अंत कर.........

"भली बहस का अंत कर,रविकर कह कर जोर"
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)

भाई  हर  चल-चित्र  में ,  होते  विविध हैं पात्र,
भूल  स्वयं को मंच पर , अभिनय करते मात्र |
अभिनय करते मात्र,सत्य के संग हो नायक,
वहीं  बुराई  का  प्रतीक ,  बनता खलनायक |
देने    को     संदेश ,   कहानी   जाय  बनाई
अभिनेता  की  हार - जीत  नहिं  होती  भाई ||



रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट 

भाई जी दिखला रहे, परंपरा से प्रीति |
खलु भी नायक बन रहे, बड़ी पुरानी रीति |
बड़ी पुरानी रीति, नीति सम्मत हैं बातें |
बता रहे तहजीब, सुधरते रिश्ते नाते | 
चौथा वाद-विवाद, मजे ले जग मुस्काई |
रहे हमेशा याद, एक हैं भाभी भाई |

------ रविकर 



ले खा एक स्टेटमेंट अखबार में और दे के आ

सुशील  
उल्लूक टाईम्स
छाये उल्लू हर जगह, पा बन्दर का साथ |
राग यहाँ फैला रहे, डाल हाथ में हाथ |
डाल हाथ में हाथ, दिवाली आने वाली |
आये काली रात, खाय जब उल्लू काली |
तांत्रिक लेते खोज, अगर उल्लू छुप जाये |
देखो बन्दर मित्र, कहीं ना तुम्हें छकाये ||

लिव इन रिलेशन की हकीकत ...एवं परिणति ...डा श्याम गुप्त

डा. श्याम गुप्त 
मानव पुरखों से रहा, कहीं आज अगुवाय |
मन मेदा मजबूत मनु, लेता जहर पचाय |
लेता जहर पचाय, खाय ले मार गालियाँ |
कर कुकर्म मुसकाय, किया था क़त्ल हालिया |
घर बलात घुस जाय, हुआ बलशाली दानव |
अपसंस्कृति व्यवहार, आज मानव ना मानव ||

What makes a halo around the sun or moon?

Virendra Kumar Sharma  
ram ram bhai 

चार दिनों से झेलता, झारखण्ड बरसात |
नीलम का यह असर है, चलता झंझावात |
चलता झंझावात, उपग्रह है प्राकृतिक |
दर्पण सा अवलोक, गगन से घटना हर इक |
हुवे घाघ अति श्रेष्ठ, पढ़ें संकेत अनोखे |
करे आकलन शुद्ध, मिलें फल हरदम चोखे || 

 Amrita Tanmay

ताज़ी भाजी सी चमक, चढ़ा चटक सा रंग |
पटल पोपले क्यूँ हुवे, करे पीलिमा दंग |
करे पीलिमा दंग, सफेदी माँ-मूली की |
नाले रही नहाय, ठण्ड से पा-लक छीकी |
केमिकल लोचा देख, होय ना दादी राजी |
कविता-लेख कुँवार, करे क्या हाय पिताजी ??


मौत के बाद है असल जीवन

श्यामल सुमन
 मनोरमा

ईंट रेत  सीमेंट को, मिला पसीना खून ।
चुन चुन कर चुनवा दिया, हो मजबूती दून ।
हो मजबूती दून, बैठ पूजा पर माता ।
पिता पढ़ें अखबार, उन्हें दालान सुहाता ।
पत्नी ड्राइंग रूम , सीढ़ियाँ चढ़ते बच्चे ।
गृह प्रवेश की धूम, इरादे अच्छे सच्चे ।।

 http://www.openbooksonline.com/

माता देखी पुत्र की, जब से प्रगति रिपोट ।
मन में नित चिन्तन करे, सुनी गडकरी खोट
सुनी गडकरी खोट, आई-क्यु बहुतै अच्छा ।
दाउद ना बन जाय, करो हे ईश्वर रक्षा ।
बनना इसे नरेंद्र, उसे बाबा समझाता ।
संस्कार शुभ-श्रेष्ठ, सदा दे सदगुण माता ।

मुझे इश्क की बिमारी लगी

"अनंत" अरुन शर्मा
 दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )


  दिन दूभर और रात भारी लगी है ।
 2 2 2 2 1 2 1 22 1 22  (अरुण शर्मा ) 

महबूबा की अजब तयारी लगी है ।
जब से देखा उसे हमारी लगी है ।।


करने आता तभी मुलाक़ात साला 

उसकी बोली मुझे कटारी लगी है ।।

Untitled

Arun Yadav 

माता की महिमा अमिट , डाकू लीडर चोर ।
भक्त नशेडी उद्यमी, कवि पीड़ित कमजोर ।

कवि पीड़ित कमजोर, होय बलवान अभागा
|
नहिं कोयल सी माय, यहाँ पर अच्छा कागा 
|
अपने बच्चे मान, पालती सबको काकी ।

रविकर जै जै बोल, जोर से जै माता की ||

अब्धि-हार

प्रतुल वशिष्ठ  
खींचा-खींची कर रहे, इक दूजे की चीज ।
सोम सँभाले स्वयं सब, भूमि रही है खीज ।
भूमि रही है खीज, सभी को रखे पकड़ के ।
पर वारिधि सुत वारि, लफंगा बढ़ा अकड़ के
चाह चाँदनी चूम, हरकतें बेहद नीची ।
रत्नाकर आवेश, रोज हो खींचा खींची ।।


6 comments:

  1. उल्लू का स्टेटमेंट छाप दिये देते ही !
    आभार !

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  2. उपसंहार बता रहे,खीचे फिर फिर चित्र
    बातों में आना नही,समझे रविकर मित्र

    समझे रविकर मित्र,अरुण जी चारा डाले
    लालच में खा लिया,फिर पड़ जाये न पाले

    देता धीर सलाह,संभलना इस वार में
    फस जाये ये अरुण,अपने उपसंहार में,,,,,

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    1. नकारात्मक नकारते, रखते मन में धीर |
      सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
      कभी नहीं हो पीर, जलधि का मंथन करके |
      जलता नहीं शरीर, मिले घट अमृत भरके |
      करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
      हो सबका कल्याण, नहीं सिद्धांत नकारा ||

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  3. माता देखी पुत्र की, जब से प्रगति रिपोट ।
    मन में नित चिन्तन करे, सुनी गडकरी खोट
    सुनी गडकरी खोट, आई-क्यु बहुतै अच्छा ।
    दाउद ना बन जाय, करो हे ईश्वर रक्षा ।
    बनना इसे नरेंद्र, उसे बाबा समझाता ।
    संस्कार शुभ-श्रेष्ठ, सदा दे सदगुण माता ।

    भले लिंक लिख्खाड है भली आपकी बाण ,

    किन्तु टिप्पणियाँ आपकी सदा हमारी शान ,

    बचो !भाई अरुण निगम से

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  4. दोहे से दोहे मिले, दोहों की आ गई बाढ़।
    शब्दों की बारिश हुई, नहिं सावन नहीं आषाढ़।।
    रविकर सर बेहतरीन प्रस्तुति....

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  5. वाह ... बेहतरीन

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