Tuesday 16 October 2012

नस्ल विदेशी ठीक, किन्तु मुँह नहीं लगाना-




"नवरात्र की शुभकामनाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')


मैया करता वन्दना, आई शुभ नवरात |
भक्त भाव से भगवती, खुश झटपट हो जात ||

"वफादार है बड़े काम का" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

प्रतियोगी काटें गला, करें जीत से प्रीत |
चूहे से बिल्ली विकट, कुक्कुर उस से जीत |
कुक्कुर उस से जीत, मीत है युगों पुराना |
नस्ल विदेशी ठीक, किन्तु मुँह नहीं लगाना |
प्राण वायु का शत्रु, किन्तु हरदम उपयोगी |
खेल कूद में फर्स्ट, बड़ा बढ़िया प्रतियोगी ||



अपनी ही किरकिरी करा रहे सलमान ...

महेन्द्र श्रीवास्तव 
साफ़ सफाई में लगा सारा कुनबा मित्र |
बेगम बागम खींचती, ढेर पुराने चित्र |
ढेर पुराने चित्र , ऊंट अब आया नीचे |
वो पहाड़ सा ठाड़, डालता यहाँ किरीचें |
नजरों में सैफई, मुलायम सहित खुदाई |
मोहन  इसको रोक, करे जो साफ़ सफाई ||

जो बात इस जगह है कहीं पै नहीं..............

पी.एस .भाकुनी 

चौरासी में था वहाँ, चार वर्ष का काम |
नेकचंद की कला का, हुआ चतुर्दिक नाम |
हुआ चतुर्दिक नाम, लगाया फिर से चक्कर |
करे प्रभावित लेख, बड़ा आभारी रविकर |
अजगर हाथी शेर, धरा के सारे वासी |
भरे पड़े हैं ढेर, लाख योनी चौरासी ||


एक ब्लोगिया विमर्श यह भी

Virendra Kumar Sharma 

कैसा मधुरिम प्यार है, वाह युगल विद्वान |
उड़ा रहे हैं धज्जियाँ, दे दे के सम्मान |
दे दे के सम्मान, विवादों में रस लेता |
धक्का-मुक्की होय, मगर मत बनो विजेता |
जितवाओ साहित्य, जोर से बोलो हैसा |
डाल हाथ में हाथ, अजी यह खटपट कैसा ||

ब्रेक के बाद फिर वाड्रा !


खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    जिन मित्रों की रचनाओं को आपने टिपियाया है।
    उन्हें तो अपनी हाजिरी यहाँ लगानी ही चाहिए!
    मेरे विचार से आपके श्रम का यह अच्छा प्रतिदान होता!

    ReplyDelete
  2. रविकर जी तो ब्लॉग जगत के दिनकर हैं ,

    चक्र धारी अशोक हैं ,

    आशु कविता के सिरमौर हैं .

    इनका न कोई ओर है न छोर (ओर बोले तो सिरा )

    ऐसे रविकर को कैंटन के सौ सौ प्रणाम .आप विज्ञान को भी कुंडली में ढालके बोध गम्य बना रहें हैं व्यंग्य और तंज को भी .हाँ रविकर जी ,कम खर्च बाला नशीं ,"हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा" का भाई है .

    ReplyDelete
  3. .हाँ रविकर जी ,कम खर्च बाला नशीं ,"हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा" का भाई है .

    ReplyDelete
  4. चर्चे और चरखे सब जीजाजी के हैं .अभी भी हरीश रावत जी मासूमियत से

    अशोक खेमका को कह रहें हैं -लोकतंत्र में कौन किसको मरवाता है .मरवा सकता है .बेचारे ने यही तो कहा ,चाहे आप मुझे टर्मिनेट करदो या मरवा दो -मैं

    सच को सच कहूंगा .भारत की प्रशासनिक सेवा में होने का मुझे गर्व है ,मेरी निष्ठा इस देश के साथ है किसी सरकार के साथ नहीं है न मैं ने उसकी नीति

    के विषय में कुछ कहा है .मेरा काम है नियमानुसार काम करना वह मैं करता रहूँगा .यह वही अधिकारी है जिसके 20-21 साला सेवा में 42 -43 तबादले

    हो चुके हैं ईमानदार होने की वजह से .

    ज़ाहिर है उन्हें अपनी जान का ख़तरा है .आप कहतें हैं लोकतंत्र में कौन किसको मारता है हम बतलातें हैं -

    प्रवीर देव भंज देव ,अलवर के राजा (आपने जोंगा जीप का विरोध किया था ),नागरवाला (आपात काल के दौरान मरवाए गए थे ,माताजी ने 70 लाख

    रुपया बैंक से अपने हस्ताक्षर करके निकाला था नागरवाला पुष्टि को तैयार थे .),श्यामा प्रसाद मुखर्जी साहब ,सभी मरवाए गए थे इसी लोकतंत्र में .अब

    केजरी -वार (केजरीवाल नहीं

    )सरकार के गले की हड्डी बना है .

    खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
    कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
    देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
    लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
    कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
    करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
    खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

    ReplyDelete
  5. हमें फख्र है इस अधिकारी अशोक खेमका साहब पर जो किसी वक्त नेहरु राजकीय महाविद्यालय ,झज्जर में पढ़ाते थे .इत्तेफाकन हम भी वहीँ थे तब

    आप एक दम से

    युवा थे .आईएएस बाद को बने हैं .तब भी आप यही सात्विक आंच लिए थे .

    ReplyDelete
  6. .चर्चे और चरखे सब जीजाजी के हैं .अभी भी हरीश रावत जी मासूमियत से

    अशोक खेमका को कह रहें हैं -लोकतंत्र में कौन किसको मरवाता है .मरवा सकता है .बेचारे ने यही तो कहा ,चाहे आप मुझे टर्मिनेट करदो या मरवा दो -मैं

    सच को सच कहूंगा .भारत की प्रशासनिक सेवा में होने का मुझे गर्व है ,मेरी निष्ठा इस देश के साथ है किसी सरकार के साथ नहीं है न मैं ने उसकी नीति

    के विषय में कुछ कहा है .मेरा काम है नियमानुसार काम करना वह मैं करता रहूँगा .यह वही अधिकारी है जिसके 20-21 साला सेवा में 42 -43 तबादले

    हो चुके हैं ईमानदार होने की वजह से .

    ज़ाहिर है उन्हें अपनी जान का ख़तरा है .आप कहतें हैं लोकतंत्र में कौन किसको मारता है हम बतलातें हैं -

    प्रवीर देव भंज देव ,अलवर के राजा (आपने जोंगा जीप का विरोध किया था ),नागरवाला (आपात काल के दौरान मरवाए गए थे ,माताजी ने 70 लाख

    रुपया बैंक से अपने हस्ताक्षर करके निकाला था नागरवाला पुष्टि को तैयार थे .),श्यामा प्रसाद मुखर्जी साहब ,सभी मरवाए गए थे इसी लोकतंत्र में .अब

    केजरी -वार (केजरीवाल नहीं

    )सरकार के गले की हड्डी बना है .

    खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
    कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
    देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
    लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
    कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
    करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
    खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

    ReplyDelete


  7. अरे भाई !चोरी करते पकड़े गएँ हैं तो क्या हुआ .सिद्ध तो करो की चोरी की थी .बहस करो ,कचहरी में आओ वहां देखेंगे चोर बड़ा या कोतवाल .पैरों को

    हाथ लगाओगे चोर के कोतवाल साहब .यही सन्देश दे रहें हैं सलमान खुर्शीद .

    अपनी ही किरकिरी करा रहे सलमान ...
    महेन्द्र श्रीवास्तव
    आधा सच...
    साफ़ सफाई में लगा सारा कुनबा मित्र |
    बेगम बागम खींचती, ढेर पुराने चित्र |
    ढेर पुराने चित्र , ऊंट अब आया नीचे |
    वो पहाड़ सा ठाड़, डालता यहाँ किरीचें |
    नजरों में सैफई, मुलायम सहित खुदाई |
    मोहन इसको रोक, करे जो साफ़ सफाई ||

    ReplyDelete
  8. एक मामूली सी पोस्ट पर आपकी अमूल्य प्रतिकिर्या मेरे लिए एक उपलब्धि से कम नहीं है. और इस मंच में उसका जिक्र......निशब्द हूँ .....
    आभार...दिल से

    ReplyDelete