Thursday 12 July 2012

सूर्पनखा की नाक का, था उनको अफ़सोस


संजीवनी न मिली हनुमान को-रविकर :चर्चा-मंच 939

 
शिवम् मिश्रा
बुरा भला

सुबह सुबह हनुमान जी, रामायण में आय ।
शक्ति दिखाके हैं गए, सम्मुख सीता माय ।
सम्मुख सीता माय, भूख जोरों से लगती ।
बड़ी वाटिका मस्त , पुष्प-पल्लव फल सजती ।
गए रुस्तमे हिंद, मिली मैया की अनुमत ।
आयें लंका जार, बताओ हो न सहमत  ।।
तमाम सेतु प्रासंगिक सावन के बयार बहाते रहे ,ब्लोगिंग धारावाहिक पे चल रहे शब्द बाणों खूब चले ,राम के विरह में सीता से ज्यादा राम सुबके ...
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सूर्पनखा की नाक का, था उनको अफ़सोस |
लक्ष्मण ने काटी सही, नहीं रख सके होश |
नहीं रख सके होश , क्षम्य नारी की गलती |
नारी का क्या दोष, राक्षसों के संग पलती |
कह रविकर श्री राम, बचे अभियोग जबर से |
बना रहा अनजान, बड़ा आयोग खबर से ||

"अब तो समझ "

तितली उड़ कौआ उड़ा, उल्लू उड़ा बताय |
आज उड़ाते पेड़ भी, धरा सफा हो जाय |
धरा सफा हो जाय, पेड़ पर नंबर ज्यादा |
पक्षी सारे आज, बदलने लगे इरादा |
वैसे उड़ते लोग, उड़ाते बाप कमाई |
बच्चों का यह खेल, बड़ी बेईमानी लाई ||
बहुत उड़ रहा आज कल, है इसमें क्या राज ।
राज हुआ उल्लूक का, सारा मस्त समाज ।। 

"सावन के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अल्मोड़ा से उतर के, देख तराई आय ।
उलटी गंगा न बहे, पी  ले रस मस्ताय ।।

फोटो खिंचवाना एक अदा है , लेकिन फोटो खींचना एक कला है --

फोटो बढ़िया लग रहा, मतलब व्यक्ति खराब ।
गर फोटो घटिया कहें, है तारीफ़ जनाब ।।

आस एक अनपली रह गयी

इस ब्लॉग पर मिल रहे, संस्कार निर्बाध ।
चुल्लू से पीते रहो, संस्कार को साध ।।

बाबा भोलेनाथ का दर्शन

(Arvind Mishra)
जय जय जय अरविन्द की, माँ भारती विराज ।
भक्तों पर करती  कृपा, दे सम्यक आवाज ।।

न्यू मीडिया अपने उत्तरदायित्वों को न भूले : बालेन्दु शर्मा दाधीच


सब के सब हैं पूर्वज, लो श्रद्धा से नाम ।
बन्दर हैं तो क्या हुआ, गुरु उस्तुरा थाम ।
गुरु उस्तुरा थाम, बाल की खाल निकालें ।
हो दूजे का भाव , शब्द में अपने ढाले ।
हुवे असहमत आप, उस्तुरा मार भगाए ।
समझदार उल्लूक, उसे बिलकुल न भाये ।।

रविकर पर थू थू करे, जो खाया इक प्याज

नुक्कड़ -पर ही

 बहुत बहुत आभार, आय नुक्कड़ पर बैठा ।
 ले पी  ले दो पैग, लगे क्यूँ  ऐंठा ऐंठा ??

सुरम्या


प्रोफ़ेसर की टिप्प्णी , गहता सार तुरंत ।
 बड़ी पुस्तिका का करे, चंद मिनट में अंत ।।

वो गूंगी नहीं थी !!!


ऐसे लोगों का करे, प्रभु ही अब कल्याण ।
बच्चे के रोये बिना, नहीं दूध का पान ।
 नहीं दूध का पान, बताओ उसको पूरा ।
पूरा होवे प्यार, कभी न रहे अधूरा ।
छोड़े सही प्रभाव, किन्तु यह सदा  मुहब्बत ।
दूजा दे गर दांव, नहीं  थी उसमें कुव्वत ।।

चाँद का सफ़र

ऋता शेखर मधु
मधुर गुंजन
अच्छी प्रस्तुति है सखे, बड़े अनोखे भाव ।
एक एक पंक्ति पढो, बढ़ता जाए चाव ।।

अंत में एक समाचार-
जंतर मंतर दिल्ली से 

जमी हुई संतोष हैं , जंतर मंतर आय |
अनशन पर बैठे हुवे, है जिन्दा बतलाय |
है जिन्दा बतलाय, बड़े जालिम ससुरारी |
मृत घोषित कर हड़प, रहे संपत्ति हमारी |
राहुल सुनो गुहार,  करो शादी बेटी से |
दूंगी तुम्हें दहेज़, करोड़ चौदह पेटी से ||

 

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