Monday 18 June 2012

करूँ नहीं टिप्पणी, पढ़े बिन कुछ भी पर्चा -

नेकी कर दरिया में डाल

ऋता शेखर मधु
मधुर गुंजन
मेहनत हुई फिजूल सब, दरिया दिया उलीच |
नेकी बही समुद्र में, तट पर ठाढ़ा नीच |

तट पर ठाढ़ा नीच, नीच ने थप्पड़ मारा |
रविकर आँखें मींच, बहाये अश्रु धारा |

दरिया फिर भर जाय, नहीं पर नेकी डाले |
नेकी रखके जेब, नीच को फेंके खाले || 

"आओ अपना धर्म निभाएँ" (चर्चा मंच-915)

चर्चा में कितना करें, समय गुरूजी खर्च |
पाठक-गण वाचन करें, करनी पड़े न सर्च |

करनी पड़े न सर्च, सजी उत्कृष्ट अनोखी |
खट्टी-मिट्ठी मस्त, प्रस्तुती ताज़ी चोखी |

करूँ नहीं टिप्पणी, पढ़े बिन कुछ भी पर्चा |
होगी यह तौहीन, समय जो लेती चर्चा ||


वारुणी-वर्जना

noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय)
जाले

पी पी कर पछता रहे, रोज पियक्कड़ आज ।
नारी धन दौलत गई, लत पर लेकिन नाज ।

लत पर लेकिन नाज, राज की बात बताता ।
काट लीजिये नाक, खुदा फिर साफ़ दिखाता ।

रविकर संध्या होय, लगे इक सिर पर टिप्पी ।
कदम बढ़ें दो सीध, बहकते फिर से  पी पी ।। 

मुझे लडकी बना दे 

मेरा मन

अर्जी कर मंजूर जब, लड़की दिया बनाय ।
मची हाय-तोबा गजब, मुश्किल में मर माय ।

मुश्किल में मर माय, सास ससुरा पति पीटा ।
किया एक का व्याह, कर्ज में गया घसीटा ।

बिन व्याहे दो जन्म, अगर है तेरी मर्जी ।
करे कष्ट आजन्म, सुने ना कोई अर्जी ।।

किसी की आहटों का अहसास

Deepti Sharma 
स्पर्श
और चाँद भी डूबता, निकले घंटा लेट |
एक मास में तीन दिन, खुद को रखे समेट |

खुद को रखे समेट, दर्द न जाने मेरे |
हैं गंवार ठाठ-ठेठ, छुपे जा कहीं सवेरे |

दीप्ति जी को दाद, समय हित चाँद भरोसा |
सुने नहीं फरियाद, तभी तो रविकर कोसा ||



लम्‍बी अनुपस्थिति के बाद वापसी

  अजित गुप्‍ता का कोना 

स्वागत करते महोदया, एक ब्रेक के बाद |
डेढ़ मास में जो शुरू, फिर से ये संवाद | 


फिर से ये संवाद, कई नव भाव समेटे |
लगा रखी उम्मीद, शीघ्र हम सब को भेंटे |


मिले लेख सुविचार, धीर न लम्बी धरते |
करिए कुछ तो पोस्ट, आपका स्वागत करते ||


विज्ञान कथाएं सामाजिक और वैज्ञानिक युक्तियों के कोष हैं- डॉ0 अरविंद मिश्र

कुम्भकर्ण की नींद हो, या पुष्पक सा यान |
संजय की हो दूर दृष्ट, या नियोग संतान |


या नियोग संतान, कल्पना बनें हकीकत |
होते अनुसंधान, नहीं वैज्ञानिक  दिक्कत |


धर्म दिखाए राह, उसी युगकाल स्वर्ण की |
खोजो चाभी जाग, नींद से कुम्भकर्ण की ||


गुड़ सी जिंदगी !!!

 my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन....

 

रचे  जिंदगी पर खरे, सुन्दर सुन्दर शेर |
अनुकृति हर इक शेर है, आँखें रहे तरेर |

आँखें रहे तरेर, बड़े बब्बर है सारे |
दिखलाते सौ रंग, जिन्दगी सही सँवारे |

बाधाएं भी ढेर, प्यार से करो बंदगी |
गुड़ बारिश शतरंज, प्रेम ही रचे जिंदगी |
 

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर टिप्पणी दिनेश जी.
    सादर

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  2. चर्चा हो छोटी तो पर्चा पढ़ सकते हो |
    नहीं किया ऐसा तो लल्लू बन सकते हो ||

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  3. चर्चा में कितना करें, समय गुरूजी खर्च |
    पाठक-गण वाचन करें, करनी पड़े न सर्च |

    बढ़िया भावपूर्ण रचना प्रस्तुति...

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  4. जवाब नही आप के अंदाज़ का..

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  5. करूँ नहीं टिप्पणी, पढ़े बिन कुछ भी पर्चा |
    होगी यह तौहीन, समय जो लेती चर्चा ||
    पी पी कर पछता रहे, रोज पियक्कड़ आज ।
    नारी धन दौलत गई, लत पर लेकिन नाज ।

    बहुत शानदार प्रस्तुति .

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  6. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

    कल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    बहुत मुश्किल सा दौर है ये

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  7. वाह जी वाह ... आपके निराले अंदाज़ की दिल्लगी कमाल है ...

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  8. बहुत सुंदर सुंदर नये नये रंगों के साथ ।

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  9. यह तो अच्छी काव्यमयी चर्चा है।

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  10. बहुत बढ़िया सर!



    सादर

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  11. बहुत सुंदर

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  12. आपका टिप्पणी करने के अंदाज इतना उम्दा है कि स्वयं में ही एक नयी रचना सृजित होजाती है.

    इसे इसी तरह अनवरत चलने दें. बहुत सुंदर. आभार.

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